लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
काश, इसके पीछे राजनीति न होती
एक पन्द्रह वर्षीया लड़की के साथ पुरुषों ने बलात्कार किया और उसे आग में झोंक कर मार डाला यह एक घटना है। यह घटना सभी जानते हैं क्योंकि इस घटना के पीछे राजनीति है और राजनीतिक लोग हैं। जाँच-पड़ताल के बाद मुजरिम बलात्कारी और खूनी को गिरफ़्तार कर लिया गया है-यह ख़बर अख़बार के पहले पन्ने पर छपी है और टेलीविजन पर 'ब्रेकिंग न्यूज' में दिखायी गयी। किसे-किसे गिरफ्तार किया गया है, वे लोग कौन हैं, किस राजनैतिक दल से जुड़े हुए हैं, इस बारे में चारों तरफ़ तलहका मचा हआ है।
मैं सिर्फ यह सोच रही हूँ कि इस तापसी मलिक नामक लड़की के बलात्कार और हत्याकांड के साथ अगर कोई राजनीति न जुड़ी होती, इसके पीछे अगर कोई राजनीतिज्ञ न होता तो क्या इतनी हड़कम्प मचती? सीबीआई जाँच होती? कोई गिरफ्तार किया जाता?
तापसी मलिक अत्यन्त गरीब घर की लड़की थी। उसके जैसी दरिद्र लाखों लड़कियाँ इस राज्य में मौजूद हैं। वे लोग क्या खाती हैं, क्या पहनती हैं, उन लोगों के पास ज़मीन है या नहीं, उन लोगों को दो पैसों की कमाई है या नहीं, इसकी ख़बर कौन रखता है? वे लोग कितने लात-झाड़ खा रही हैं, कौन लोग उनकी बेइज्जती करते रहते हैं, लानत-मलामत करते रहते हैं, कौन लोग दिन-दोपहर-रात उनका बलात्कार करते रहते हैं यह जानने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रखता। घर-घर में तापसी मलिक जैसी लाखों लड़कियाँ घुटती रहती हैं, रोती-सिसकती रहती हैं।
यह सोचने की कोई वजह नहीं है कि इस देश में औरतें बलात्कार-मुक्त हालत में जीवन व्यतीत करती हैं। यह सोच लेने की भी कोई वजह नहीं है कि इस देश में और इस राज्य में औरतें अपने सर्वमय अधिकार इस ढंग से जीती हैं कि अचानक कहीं कोई बलात्कार से जुड़ी दुर्घटना घट जाती है तो तहलका मच जाता है।
तापसी मलिक की हत्या और हत्या के विचार की माँग करने के पीछे अगर दो राजनीतिक दल न जुड़े होते और वे दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होते, तो मुझे पक्का विश्वास है कि यह बलात्कार और हत्या भी रोजमर्रा के नारी-बलात्कार और हत्या जैसी तुच्छातितुच्छ खबर या ख़बरहीन हो कर पड़ी रहती। भारतवर्ष में बहुत बड़ी संख्या में औरत बेची जा रही है, ग़ायब करके विदेशों को भेजी जा रही है, प्रताड़ित की जाती है, हर दिन ही वेश्यावृत्ति में उतरने को लाचार हो रही है। भारतवर्ष में बड़ी संख्या में औरतें हर दिन बलात्कार, हत्या और आत्महत्या की शिकार हो रही हैं। उम्रदार-कच्ची उम्र की औरतें अनाहार, अनाचार, अविचार, अशिक्षा और स्वास्थ्यहीनता की शिकार हो रही हैं और इसे कोई भी इन्सान, देश की अहम या गम्भीर समस्या नहीं मानता। क्षमतावान पुरुष, भले वे राजनीति में हो या राजनीति से बाहर, औरत के मामले में एक राजनैतिक नक्शा, बड़े जतन से बनाकर तैयार रखता है। वह नक्शा है-पुरुष है राजा जात और औरत प्रजा। वह भी जो-सो प्रजा नहीं, बेहद निम्न कोटि की प्रजा।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
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- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
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- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
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- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
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- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
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- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं